कोरोना की अंतिम आशा वैक्सीन की एक खेप रूस से भारत आई थी। अगर ये सफल भी हो गई तो क्या भारत की डेढ़ करोड़ की जनता तक ये पहुँच पाना सम्भव है। ये बात मानने मे थोड़ा शक है क्योंकि हमारे तंत्र में इच्छाशक्ति का कदम कदम पर अभाव दिखाई देता है। और बिना किसी मिशनरी स्पिरिट के कोरोना वायरस के टीके का अपार जनसमूहों तक पहुंचना असम्भव सा दिखता है। इसके अलावा एक और अति महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस देश की अधिकांश गरीब जनता की जेब के मुताबिक टीके का दाम तय करना। वैसे विश्वास तो यही किया जाता है कि मोदी है तो मुमकिन है। देखिए
टीका